भारत बंद का यह माहौल पिछले साल से बन रहा है। तब यूनियनों ने श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया को 17 मांगों की एक लिस्ट सौंपी थी। यूनियनों का दावा है कि सरकार ने इन मांगों को नजरअंदाज किया है और पिछले एक दशक से वार्षिक श्रम सम्मेलन का आयोजन भी नहीं हुआ है। यह सरकार की उदासीनता दर्शाता है।
अपनी विभिन्न मांगों को लेकर 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने 9 जुलाई, बुधवार को भारत बंद का आह्वान किया है। माना जा रहा है कि चुनावी राज्य होने के कारण बिहार में इसका असर दिखाई दे सकता है।
साथ ही गैर-भाजपा शासित राज्यों में भी आम जनजीवन पर बंद का असर हो सकता है। जानकारी के मुताबिक, बैंकिंग, बीमा, डाक सेवाओं से लेकर कोयला खनन तक के क्षेत्रों के 25 करोड़ से ज्यादा कर्मचारी इस देशव्यापी हड़ताल में हिस्सा से सकते हैं।
भारत बंद का आह्वान करने वाले संगठनों ने पिछले वर्ष श्रम मंत्री मनसुख मांडविया को 17-सूत्रीय मांगों का एक चार्टर प्रस्तुत किया था. उनका आरोप है कि सरकार पिछले एक दशक से वार्षिक श्रम सम्मेलन का आयोजन नहीं कर रही है, जिससे मजदूरों और कर्मचारियों के हितों के खिलाफ निर्णय लिए जा रहे हैं. मजदूर संगठनों ने यह भी कहा कि आर्थिक नीतियों के कारण बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है, आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं, मजदूरी में कमी आ रही है, और शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बुनियादी नागरिक सुविधाओं के लिए सामाजिक क्षेत्र के खर्च में कटौती की जा रही है. इन सभी समस्याओं का प्रभाव गरीबों, निम्न आय वर्ग के लोगों और मध्यम वर्ग पर पड़ रहा है, जिससे असमानता और अभाव की स्थिति और भी गंभीर हो रही है.