0 वन विभाग भी पूरे मामले में खामोश बैठा

कोरबा-कटघोरा। कटघोरा नगर पालिका क्षेत्र में पहले नीलगिरी वृक्षों की अवैध कटाई ने सुर्खियाँ बटोरी थीं और अब उसी तर्ज पर एक नया ‘सागौन कांड’ सामने आया है, जिसने प्रशासन और पर्यावरण प्रेमियों को चिंतित कर दिया है। इस मामले में स्थानीय नेता एवं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रतिनिधि लाल बहादुर कोराम ने गंभीर आरोप लगाते हुए अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, कटघोरा को एक लिखित शिकायत सौंपकर कार्रवाई की मांग की है।

शिकायत के अनुसार, पवन अग्रवाल (पिता स्व. बिहारी अग्रवाल), निवासी कटघोरा, जिला कोरबा, ने अपने स्वामित्व की भूमि के खसरा नंबर 536/1, 537/1, 538/1, 536/2, कुल रकबा 0.134 हे० और 0.109 हे० में स्थित लगभग 35 नग सागौन वृक्ष और 5 अन्य प्रजाति के वृक्षों के विदोहन (कटाई) हेतु न्यायालय में अनुमति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था। इस पर न्यायालय ने दिनांक 29 मई 2025 को एक ईश्तहार जारी किया, जिसमें उल्लेख था कि सर्वसाधारण एवं आम जनता यदि इस वृक्ष कटाई के विरुद्ध कोई आपत्ति दर्ज कराना चाहते हैं, तो 2 जून 2025 तक न्यायालय में उपस्थित होकर आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।

0 अवैध कटाई केसाक्ष्य मिटाने/छिपाने की पूरी आशंका

लाल बहादुर कोराम के अनुसार, न्यायालय की अंतिम अनुमति और आपत्तियों की सुनवाई से पहले ही पवन अग्रवाल द्वारा अधिसंख्य वृक्षों की कटाई कर दी गई है। न केवल सागौन के वृक्षों को काटा गया, बल्कि प्राप्त की गई बहुमूल्य इमारती लकड़ियों को अन्यत्र स्थानांतरित भी कर दिया गया है। मौके पर अभी भी ठूंठ, डंठल, पत्ते और ताजा कटाई के चिन्ह स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। कोराम का कहना है कि यदि इस मामले की तत्काल मौका जांच नहीं की गई, तो संबंधित व्यक्ति द्वारा साक्ष्य छुपाने की कोशिश की जा सकती है।

लाल बहादुर कोराम ने प्रशासन से अपील की है कि पवन अग्रवाल ने न्यायालय को धोखे में रखकर एवं कानूनी प्रक्रिया की अवहेलना करते हुए पर्यावरण और सार्वजनिक हित के विरुद्ध कार्य किया है। उन्होंने मांग की है कि पवन अग्रवाल के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाए,वृक्षों के विदोहन की अनुमति तत्काल प्रभाव से निरस्त की जाए,और संपूर्ण प्रकरण की निष्पक्ष जांच की जाए ताकि इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।

पर्यावरणीय और सामाजिक चिंता

यह मामला केवल कानून के उल्लंघन का नहीं, बल्कि पर्यावरणीय असंतुलन और प्रशासनिक प्रक्रियाओं की अनदेखी का भी प्रतीक बन गया है। पहले नीलगिरी वृक्षों की कटाई और अब सागौन जैसे बहुमूल्य वृक्षों की अवैध कटाई से यह स्पष्ट होता है कि स्थानीय स्तर पर वन संपदा के दोहन को लेकर सजगता की कमी है और कानून की अनदेखी निरंतर जारी है।

अब देखना यह है कि प्रशासन इस प्रकरण में कितनी तत्परता और पारदर्शिता से कार्यवाही करता है और क्या न्यायालय इस अवैध कार्रवाई पर सख्त रुख अपनाता है या नहीं।

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Khem Lal Sahu
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